चित भी मेरी, पट भी मेरी

पाकिस्तान के धार्मिक नेताओं यानी उलेमा ने एक फ़तवा जारी किया है जिसमें कहा गया है किसी इस्लामी देश में सार्वजनिक स्थलों पर आत्मघाती हमला करना इस्लाम की नज़र में हराम है। यह सुर्खी देख कर बहुत अच्छा लगा, पर फिर ध्यान दिया कि इस में कहा गया है, “किसी इस्लामी देश में..”। यानी, किसी और देश में यदि आप आत्मघाती हमले करते हैं तो वह वाजिब है, जिहाद है, पुण्य है। किसी को कोई शक न रह जाए इसलिए इन काबिल उलेमा ने स्पष्ट किया कि “फ़लस्तीन और कश्मीर में सार्वजनिक स्थलों पर होने वाले आत्मघाती हमले इस फ़तवे के दायरे से बाहर हैं..”। वाह रे तेरा न्याय। उन्हें कोई यह तो बताए कि जब कश्मीर में सार्वजनिक स्थान पर आप हमला करते हैं, उस में मुसलमान ही तो मरते हैं, ग़ैर मुसलमानों को तो आप ने पहले ही बाहर कर दिया है। … यानी मेरे यहाँ बेकसूर लोग मरें तो ग़लत, तेरे यहाँ मरें तो ठीक।

कहते हैं जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वह खुद उस में गिर जाता है। जब पाकिस्तान के धार्मिक कट्टरपन्थियों ने अपने यहाँ दहशतगर्दी के कारखाने खोले तो उन्हें अन्दाज़ा नहीं था कि कुछ असर उन के यहाँ भी होगा। अब जब उन को अपनी कड़वी दवाई का घूँट स्वयं पीना पड़ा यानी आत्मघाती हमलों में उन के लोग मरने लगे तो उन को फ़तवा जारी करना पड़ा, पर कहीं ख़ुदा-ना-ख्वास्ता इस से हर जगह अमन न फैले, इसलिए साथ में यह भी कहना पड़ा कि बाहर आप दहशतगर्दी कर सकते हैं।


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